रविवार, 27 नवंबर 2022

धर्म एक विश्वास व आस्तित्व का प्रश्न

 मानव जाति का इस धरती पे होना अपने आप में एक बहुत महत्वपूर्ण घटना है। धर्म एक आधार है जो मानव को उसके मूल तत्वों से परिचय करता रहता है। सनातन धर्म विश्व का सबसे प्राचीनतम धर्म है। इसमें प्रकृति और पृथ्वी से जुडी हुई बस्तुवों का उल्लेख मिलता है। ईश्वर धर्म के केंद्र में एक अत्यंत सम्मानित व सक्षम व्यक्तित्व है। 

आधुनिक युग में धर्म के रूप अलग दिख सकते है। परन्तु सभी के मूल तत्त्व या केंद्र में मोक्ष की बात होती है। हमें अपने मूल धर्म के जड़ो को मजबूती से पकड़कर उसमे अपना आस्तित्व ढूढ़ना  होगा। 

रविवार, 13 नवंबर 2022

सनातन का अर्थ

 सनातन का अर्थ है कुछ ऐसा जो कालातीत हो, पुरातन हो ।  आम या बोलचाल की भाषा में  इसे हिन्दू धर्म या सनातन धर्म कहा जा सकता  है। इसका अर्थ संस्कृति, पुरातन  और सभ्यता भी हो सकता है। तो, सनातन धर्म का अर्थ "कालातीत सभ्यता" से माना जा  सकता है। भगवत  गीता में, कृष्ण जी ने अपने द्वारा साझा किए गए ज्ञान को सनातन या कालातीत बताया हैं।

हिंदुत्व -सनातन धर्म के मूल में है। यह  एक शब्द जिसका उल्लेख 19 वीं शताब्दी के अंत में चंद्रनाथ बसु ने भी  किया था।  वह  जोर देकर कहते  है कि यह सनातन धर्म है,जो समय के साथ बदलता है और इसे सुधार की जरुरत नहीं है। यहाँ  के लोगो के मन में सर्व -धर्म समभाव की भावना कूट कूट के भरी है। 

नरेंद्र मोदी जी के काल  में, भारतवर्ष के लोग अपने पुरातन सनातन गौरव का अनुभव कर रहे है। उम्मीद है २१ वी सदी का भारत आत्मनिर्भर होगा। जय श्रीराम 

सनातन धर्म: एक मार्गदर्शक के रूप में

 विश्व की समस्त समस्याओं का हल सनातन धर्म के प्राचीन सिद्धांतो में है। आज  जरुरत है की हम अपने अमूल्य धरोहर को समझे और मानवकल्याण की ओर बढे। गीता , रामायण,महाभारत,वेद,उपनिषद,और तमाम ऐसे ग्रन्थ है जो की मानव जाति के हर एक प्रश्नो का हल देने में सक्षम है। 

सामाजिक , राजनैतिक ,आर्थिक, पर्यावरणी आदि समस्यायों का हल इन महान ग्रंथो में ढूढ़ा जा सकता है। युवा पीढ़ी को इन ग्रंथो के सार को अवस्य समझाना चाहिए ताकि एक सशक्त भारत और विश्व का निर्माण किया जा सके। 



सामाजिक विघटन : एक ज्वलंत समस्या

 सामाजिक विघटन  : एक ज्वलंत समस्या 


सदियों से एक स्वर्णिम संस्कृत का साक्षी रहा है अपना प्यारा भारतवर्ष। सामाजिक मूल्यों का एक अप्रतिम उदाहरण रहा है यह भारतभूमि। आज पश्चिमी सभ्यता के चकाचौंध  में युवा एव समाज के अन्य वर्गो में जो विसंगतियाँ  देखने को मिल रही है ,उसको देखने सुनने के बाद दुःख होता है। इतिहास गवाह के पूर्व  में जो भी समाज अपने मूल आदर्शो को भूल जाता है उसका पतन भी निश्चित है। यदि हम ध्यान से देखेंगे तो इक्कीसवीं सदी के दौर में भारत में भी सामाजिक समस्याएँ अपने पराकाष्ठा  पर थी। नित नयी हिंसक घटनाये  यह दर्शाती है कि व्यक्ति एव राष्ट्र को सामाजिक मूल्यों को सवारने , सहेरने की जरुरत है। 

मंगलवार, 8 नवंबर 2022

सभी समस्याओं का समाधान व्यक्ति , समाज एवं राष्ट्र की ईमानदारी में निहित हैं।

  नैतिक मूल्यों को प्रोत्साहन देकर बचपन से ही हम ऐसे युवाओं को तैयार कर सकते हैं ।


आज यदि गौर से सबसे अधिक इन्हीं बातों की कमी जान पड़ती है।

सोचने विचारने का समय आ गया हैं  अब।

भारतवर्ष एक नैतिक राष्ट्र की सूची में प्रथम स्थान कभी रख चुका  है लेकिन आज समय बदल गया है हमें सामाजिक मूल्यों को बनाए रखना एक अहम चुनौती जान पड़ती है। 

धर्म एक विश्वास व आस्तित्व का प्रश्न

 मानव जाति का इस धरती पे होना अपने आप में एक बहुत महत्वपूर्ण घटना है। धर्म एक आधार है जो मानव को उसके मूल तत्वों से परिचय करता रहता है। सनात...